जिस कहानी में कुछ अनकहा रह जाए वही उत्कृष्ट कहानी होती है- मृदुला गर्ग


वरिष्ठ साहित्यकार मृदुल गर्ग के निबंधों का संग्रह ‘साहित्य का मनोसंधान’ का नई दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित कुंजुम स्टोर में लोकार्पण किया गया। यह संग्रह पेंगुइन प्रकाशन से छपकर आया है। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि अकसर इस बात की चर्चा होती है कि कोई कहानी उत्कृष्ट नहीं हो सकती है, लेकिन जिस कहानी में कुछ अनकहा रह जाए वही उत्कृष्ट होती है। उन्होंने कहा कि हर लेखक को पता होता है कि एक वाक्य होता है, जिसके बारे में लेखक कहता है कि अगर यह वाक्य लिख दूँ तो कहानी स्पष्ट हो जाए।

शिक्षाविद्, कथाकार और आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि लेखक भाषा में नए-नए शब्द गढ़कर साहित्य में केवल अपना योगदान करता है। इसकी बानगी ‘साहित्य का मनोसंधान’ में देखी जा सकती है। उन्होंने कहा कि साहित्य के माध्यम से मन का और मन के माध्यम से साहित्य का संबंध जो लेखक स्थापित करता है उसमें बहुत-सी चिंताएँ और सरोकार समाहित होते हैं। तभी वह साहित्य पाठकों के दिल-दिमाग में गहराई तक अपनी छाप छोड़ता है। उन्होंने कहा कि लेखन का महत्व इस बात पर निर्भर करता है कि वह पाठक के मन में कितने विचार पैदा करता है। उन्होंने कहा कि मृदुला गर्ग का नॉन-फिक्शन भी एक फिक्शन की भाँति कहानी कहता हुआ चलता है। निबंध भी अपने पात्र गढ़ते हैं और पाठक को बांधें रखते हैं।

लेखक और अनुवादक प्रभात रंजन ने कहा कि लेखक अपनी कलम से साहित्य को मानवीय मन के साथ जोड़ता है। उन्होंने कहा कि मृदुला गर्ग ने अपने निबंधों में साहित्य को हर दृष्टि से देखने का प्रयास किया है और कई ऐसे मुद्दे उठाए हैं जो आज से चार-पाँच दशक पहले भी ज्वलंत थे और आज भी। उन्होंने कहा कि'साहित्य का मनोसंधान'में निबंधों को पढ़ते हुए बार-बार यह लगता रहा कि हिंदी में ऐसी कितनी लेखिकाएँ हैं जो निबंध लिख सकती हैं? अगर एक दो हैं भी तो वह मृदुला जी की पीढ़ी की ही हैं। उनके निबंधों को पढ़ते हुए मनोहर श्याम जोशी की यह बात याद आई 'मृदुला का लेखन किसी परंपरा में नहीं आता। साफ देखना, दो टूक कहना, अपनी बात को मौलिक ढंग से कहने का साहस रखना, यह एक अद्भुत काम है।'
 
पेंगुइन स्वदेश की प्रकाशक वैशाली माथुर ने निबंध संग्रह के प्रकाशन की यात्रा पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि पेंगुइन स्वदेश पुस्तकों की गुणवत्ता व विशिष्टता को लेकर प्रतिबद्ध है और हमारी पुस्तकें उसका सार्थक प्रतिफल हैं। संपादक डॉ. संजीव मिश्र ने भी मृदुला गर्ग की लेखनी पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि कई बार लोग सवाल उठाते हैं कि क्या पढ़ा जाए, तो मेरा जवाब है कि साहित्य का मनोसंधान पढ़ लीजिए, इसमें जितनी किताबों का जिक्र है, उन्हें पढ़ जाइए, तृप्ति हो जाएगी।